भारत मे लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूँ की खेती असिंचित दशा में की जाती है। परन्तु बौनी किस्मों से अधिकतम उपज के लिए सिंचाई आवश्यक है। गेहूँ की बौनी किस्मों को 30-35 हेक्टर से.मी. और देशी किस्मों को 15-20 हेक्टर से.मी. पानी की कुल आवश्यकता होती है। उपलब्ध जल के अनुसार गेहूँ में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर करनी चाहिये। प्रथम सिंचाई में औसतन 5 सेमी. तथा बाद की सिंचाईयों में 7.5 सेमी. पानी देना चाहिए। सिंचाईयो की संख्या और पानी की मात्रा मृदा के प्रकार, वायुमण्डल का तापक्रम तथा बउई गई किस्म पर निर्भर करती है । फसल अवधि की कुछ विशेष क्रान्तिक अवस्थाओं पर बौनी किस्मों में सिंचाई करना आवश्यक होता है। सिंचाई की ये क्रान्तिक अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं -
1. पहली सिंचाई शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था पर अर्थात बोने के 20 से 25 दिन पर सिंचाई करना चाहिये। लम्बी किस्मों में पहली सिंचाई सामान्यतः बोने के लगभग 30-35 दिन बाद की जाती है।
2. दूसरी सिंचाई दोजियां निकलने की अवस्था अर्थात बोआई के लगभग 40-50 दिन बाद।
3.तीसरी सिंचाई सुशांत अवस्था अर्थात बउआई के लगभग 60-70 दिन बाद ।
4. चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था अर्थात बोआई के 80-90 दिन बाद ।
5. दूध बनने तथा शिथिल अवस्था अर्थात बोने के 100-120 दिन बाद।
6. पर्याप्त सिंचाईयां उपलब्ध होने पर बौने गेहूं में 4-6 सिंचाई देना श्रेयस्कर होता है। यदि मिट्टी काफी हल्की या बलुई है तो 2-3 अतिरिक्त सिंचाईयो की आवश्यकता हो सकती है।
सीमित मात्रा में जलापूर्ति की स्थित में सिंचाई
यदि केवल दो सिंचाई की ही सुविधा उपलब्ध है, तो पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद (शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था ) तथा दूसरी सिंचाई फूल आने के समय बोने के 80-90 दिन बाद करनी चाहिये।यदि पानी तीन सिंचाईयउ हेतु उपलब्ध है तो पहली सिंचाई शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था पर (बोआई के 20-22 दिन बाद), दूसरी तने में गाँठें बनने (बोने क 60-70 दिन बाद) व तीसरी दानो में दूध पड़ने के समय (100-120 दिन बाद) करना चाहिये। गेहूँ की देशी लम्बी बढ़ने वाली किस्मो में 1-3 सिंचाईयाँ करते हैं। पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बोने के 60-65 दिन बाद और तीसरी सिंचाई बोने के 90-95 दिन बाद करते हैं ।
असिंचित अवस्था में मृदा नमी का प्रबन्धन
खेत की जुताई कम से कम करनी चाहिए तथा जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए। जुताई का कार्य प्रातः व शायंकाल में करने से वाष्पीकरण द्वारा नमी का ह्रास कम होता है। खेत की मेड़बन्दी अच्छी प्रकार से कर लेनी चाहिए, जिससे वर्षा के पानी को खेत में ही संरक्षित किया ता सके। बुआई पंक्तियों में 5 सेमी. गहराई पर करना चाहिए। खाद व उर्वरकों की पूरी मात्रा, बोने के पहले कूड़ों में 10-12 सेमी. गहराई में दें। खरपतवारों पर समयानुसार नियंत्रण करना चाहिए।