चने में लगे रोगों की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

चने की फसल में कीट व्याधि और रोगों की समस्या कई बार आती है। यदि समय रहते उनकी पहचान और नियंत्रण के सही उपाय कर लिए जाएं पर फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। 



प्रमुख कीट एवं नियंत्रण चना फलीभेदक
चने की फसल पर लगने वाले कीटों में फली भेदक सबसे खतरनाक कीट है। इस कीट क प्रकोप से चने की उत्पादकता को 20-30 प्रतिशत की हानि होती है। भीषण प्रकोप की अवस्था में चने की 70-80 प्रतिशत तक की क्षति होती है। चना फलीभेदक के अंडे लगभग गोल, पीले रंग के मोती की तरह एक-एक करके पत्तियों पर बिखरे रहते हैं। अंडों से 5-6 दिन में नन्हीं-सी सूड़ी निकलती है जो कोमल पत्तियों को खुरच-खुरच कर खाती है।
सूड़ी 5-6 बार अपनी केंचुल उतारती है और धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। जैसे-जैसे सूड़ी बड़ी होती जाती है, यह फली में छेद करके अपना मुंह अंदर घुसाकर सारा का सारा दाना चट कर जाती है। ये सूड़ी पीले, नारंगी, गुलाबी, भूरे या काले रंग की होती है। इसकी पीठ पर विषेषकर हल्के और गहरे रंग की धारियाँ होती हैं।


समेकित कीट प्रबंधन
(क) यौन आकर्षण जाल (सेक्स फेरोमोन ट्रैप)
इसका प्रयोग कीट का प्रकोप बढ़ने से पहले चेतावनी के रूप में करते हैं। जब नर कीटों की संख्या प्रति रात्रि प्रति टैऋप 4-5 तक पहुँचने लगे तो समझना चाहिए कि अब कीट नियंत्रण जरूरी। इसमें उपलब्ध रसायन (सेप्टा) की ओर कीट आकर्षित होते है। और विशेष रूप से बनी कीप (फनल) में फिसलकर नीचे लगी पॉलीथीन में एकत्र हो जाते है।


(ख) सस्य क्रियाओं द्वारा नियंत्रण
गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करने से इन कीटों की सूड़ी के कोषित मर जाते है।
फसल की समय से बुआई करनी चाहिए
अंतर्वती फसल - चना फसल के साथ धनियों/सरसों एवं अलसी को हर 10 कतार चने के बाद 1-2 कतार लगाने से चने की इल्ली का प्रकोप कम होता है तथा ये फसलें मित्र कीड़ों को आकर्षित करती हैं ।
प्रपंची फसल- चना फसल के चारों ओर पीला गेन्दा फूल लगाने से चने की इल्ली का प्रकोप कम किया जा सकता है । प्रौढ़ मादा कीट पहले गेन्दा फूल पर अन्डे देती है । अतः तोड़ने योग्य फूलों कोसमय-समय पर तोड़कर उपयोग करने से अण्डे एवं इल्लियों की संख्या कम करने में मदद् मिलती है।


जैविक नियंत्रण
न्युक्लियर पोलीहैड्रोसिस विषाणुः आर्थिक हानि स्तर की अवस्था में पहुंचने परसबसे पहले जैविक कीट नाषी एच को मि प्रति हे के हिसाब से लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जैविक कीटनाषी में विषाणु के कण होते हैं जो सुंडियों द्वारा खाने पर उनमें विषाणु की बीमारी फैला देते हैं जिससे वे पीली पड़ जाती है तथा फूल कर मर जाती हैं। रोगग्रसित व मरी हुई सुंडियाँ पत्तियों व टहनियों पर लटकी हुई नजर आती हैं। कीटभक्षी चिड़ियों को संरक्षण फलीभेदक एवंकटुआ कीट के नियंत्रण में कीटभक्षी चिड़ियों का महत्वपूर्ण योग दान है। साधारणतयः यह पाया गया है कि कीटभक्षी चिड़ियाँ प्रतिषत तक चना फलीभेदक की सूडी को नियंत्रित कर लेती है।


जैविक नियंत्रण
परजीवी कीड़ों को बढ़ावा देने के लिए अधिक पराग वाली फसल जैसे धनिया आदि को खेत के चारों ओर लगाना चाहिए। कीटभक्षी चिड़ियों को आकर्षित एवं उत्साहित करने के लिए उनके बैठने के लिए स्थान बनाने चाहिए सुंडियों का आक्रमण होने से पहले यदि खेत में जगह पर तीन फुट लंबी डंडियाँ टी एन्टीनाआकार में लगा दी जाये ंतो इन पर पक्षी बैठेंगे जो सूंडियों को खा जाते हैं। इन डंडियों को फसल पकने से पहले हटा दें जिससे पक्षी फसल के दानों को नुकसान न पहुंचायें।


नीम व नीम आधारित रसायन
नीम की निम्बोली का अर्क भी सुंडियों के नियंत्रण में लाभकारी है।
12-13 किलो निम्बोली सुखाकर व पीस कर उसका भर 25 लीटर पानी में भिगोकर तथा महीन कपड़े से छानकर इसका अर्क तैयार हो जाता है। इसमें 500 ग्राम वाशिंग पाउडर मिलायें। इसको 250 लिटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।


कीटनाशी रसायन
विभिन्न कीटनाशी रसायनों को कटुआ इल्ली/ फलीभेदक इल्ली को नियंत्रित करने के लिए संस्तुत किया गया है। जिनमें से


क्लोरोपायीरफास (2 मिलि प्रति लीटर) + या इन्डोक्साकार्व 14.5 एस.सी. 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर
या इमामेक्टिन बेन्जोइट की 200 ग्राम दवा प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।