खेती की लागत घटाएं: घर पर बनाएं ट्राइकोडर्मा 

एनकेएम
खेती की बढ़ती लागत को कम करने के लिए किसान भाई कई तरह के प्राकृतिक उपाय अपना सकते हैं। नेशनल कृषि मेल यहां ट्राइकोडर्मा बनाने की विधि बताने की कोशिश कर रहा है। हालांकि किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि ट्राइकोडर्मा बनाने से पहले जानकारों की सलाह जरूर लें। ट्राइकोडर्मा के उत्पादन की ग्रामीण घरेलू विधि में कण्डों (गोबर के उपलों) का प्रयोग करते हैं। खेत में छायादार स्थान पर उपलों को कूट कूट कर बारिक कर देते हैं। इसमें  28 किलो ग्राम या लगभग 85 सूखे कण्डे रहते हैं। इनमें पानी मिला कर हाथों से भली भांति मिलाया जाता है। जिससे कि कण्डे का ढेर गाढ़ा भूरा दिखाई पड़ने लगे। अब उच्च कोटी का ट्राइकोडर्मा शुद्ध कल्चर 60 ग्राम इस ढेर में मिला देते हैं। इस ढेर को पुराने जूट के बोरे से अच्छी तरह ढक देते है और फिर बोरे को ऊपर से पानी से भिगो देते हैं। समय समय पर पानी का छिड़काब बोरे के ऊपर करने से उचित नमी बनी रहती है। 12-16 दिनों के बाद ढ़ेर को फावडे से नीचे तक अच्छी तरह से मिलाते हैं। और पुनः बोरे से ढ़क देते है। फिर पानी का छिड़काव समय समय पर करते रहते हैं। लगभग 18 से 20 दिनों के बाद हरे रंग की फफूंद ढ़ेर पर दिखाई देने लगती है। इस प्रकार लगभग 28 से 30 दिनों में ढ़ेर पूर्णतया हरा दिखाई देने लगता है। अब इस ढ़ेर का उपयोग मृदा उपचार के लिए करें। इस प्रकार अपने घर पर सरल, सस्ते व उच्च गुणवत्ता युक्त ट्राइकोडर्मा का उत्पादन कर सकते है। नया ढ़ेर पुनः तैयार करने के लिए पहले से तैयार ट्राइकोडर्मा का कुछ भाग बचा कर सुरक्षित रख सकते हैं और इस प्रकार इसका प्रयोग नये ढ़ेर के लिए मदर कल्चर के रूप में कर सकते हैं। जिससे बार बार हमें मदर कल्चर बाहर से नही लेना पडेगा।


कुछ सावधानियां भी रखनी है
उत्पादन हेतु छायादार स्थान का होना ज़रूरी है। जिससे कि सूर्य की किरणें ढ़ेर पर सीधी नहीं पड़ें। ढ़ेर में उचित नमी बनाए रखें। 25-30 डिग्री सेन्टीग्रड़ तापमान का होना ज़रूरी है। समय-समय पर ढ़ेर को पलटते रहना चाहिए।


खेत में प्रयोग करने की विधि
उपरोक्त विधि से तैयार ट्राइकोडर्मा को बुवाई से पूर्व 20 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से मृदा में मिला देते है। बुवाई के पश्‍चात भी पहली निराई गुड़ाई के समय पर भूमि में इसे मिलाया जा सकता है । ताकि यह पौधों की जड़ों तक पहुँच जाए।


किन फसलों पर होता ट्राइकोडर्मा का उपयोग 
ट्राइकोडर्मा सभी पौधे व सब्जियों जैसे फूलगोभी,कपास, तम्बाकू, सोयाबीन, राजमा, चुकन्दर, बैंगन, केला, टमाटर, मिर्च, आलू, प्याज, मूंगफली, मटर, सूरजमुखी, हल्दी आदि के लिये उपयोगी है। 


कैसे करें उपयोग
ट्राइकोडर्मा कार्बनिक खाद के साथ उपयोग कर सकते हैं। कार्बनिक खाद को ट्राइकोडर्मा राइजोबियम एजोस्पाईरिलियम, बेसीलस, सबटीलिस फास्फोबैक्टिरिया के साथ उपयोग कर सकते हैं। ट्राइकोडर्मा बीज या मेटाक्सिल या थाइरम के साथ उपयोग कर सकते है।टैंक मिश्रण के रुप में रासायनिक फफूंदीनाशक के साथ मिलाया जा सकता है।


ट्राइकोडर्मा के लाभ
रोग नियंत्रण
पादप वृद्धिकारक
रोगों का जैव- रासायनिक नियन्त्रण
बायोरेमिडिएशन


जरूरी सावधानियां
-मृदा में ट्राइकोडर्मा का उपयोग करने के 4 -5 दिन बाद तक रासायनिक फफूंदीनाशक का उपयोग न करें।
-सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का उपयोग न करें।
-ट्राइकोडर्मा के विकास एवं अस्तित्व के लिए उपयुक्त नमी बहुत आवश्यक है।
-ट्राइकोडर्मा उपचारित बीज को सीधा धूप की किरणों में न रखें
-ट्राइकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद (फार्म यार्ड मैन्योर)को लंबे समय तक न रखें।