नेशनल कृषि मेल
रबी सीजन में सरसों की खेती बेहद मुनाफे वाली होती है। जरूरत सिर्फ इतनी है कि इसे लगाने से पहले खेत की तैयारी वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए। ज्यादा उत्पादन के लिए क्षेत्र विशेष की उपयुक्त किस्मों का चयन,संतुलित उर्वरकों का प्रयोग, पादप रोगों, कीटों व खरपतवारों की पर्याप्त रोकथाम करना, कोहरा एवं पाला का प्रकोप होने पर फसलों का बचाव करना, उचित समय पर फसल की कटाई करने से उपज में वृध्दि होती है। इनमें से किसी एक भी कमी से फसल की पैदावार में नुकसान हो सकता है। वैज्ञानिक अनुसंधानो से पता चला है, कि उन्नतशील शस्य विधियों का समन्वित प्रबंधन करके सरसों समूह फसलों की पैदावार में डेढ़ से दो गुना वृद्धि की जा सकती है।
मिट्टी के चयन में रखें सावधानी
यह फसल समतल और अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी एच मान 6 से 7 होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु अच्छी नहीं है। यधपि क्षारीय भूमि में उसके अनुकूल किस्म लेकर इसकी खेती की जा सकती है। जहाँ की भूमि लवणीय हो वहाँ पर खेत में पानी भरकर बाहर निकाल देना चाहिए, जिससे लवण पानी के साथ घुल कर बाहर चले जायें। अगर पानी के निकास का समुचित प्रबंध न हो तो प्रत्येक वर्ष सरसों लेने से पूर्व देंचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए। जहाँ की जमीन क्षारीय है वहाँ प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम 250 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मिटटी के पी एच मान के अनुसार भिन्न हो सकती है। जिप्सम को मई से जून में जमीन में मिला देना चाहिए।
गर्मी की जुताई के परिणाम
गर्मी की जुताई से कीटों, रोगों, खरपतवारों व भूमि में वायु संचार को नियंत्रित किया जा सकता है। भूमि में छिपे कीडे व अंडे, खरपतवारों के बीज, फफूंद एवं सूक्ष्म जीव जो बीमारियों को फैलाने में सहायक होते हैं, सूर्य की तेज किरणों से नष्ट हो जाते हैं। भूमि के छिद्र खुल जाते हैं, जिससे भूमि की जल सोखने की क्षमता बढ जाती है। भूमि की निचली सतह पर पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीवों की क्रियाएं तेज होने के परिणामस्वरूप भूमि में जीवांश पदार्थों की मात्रा एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बढ जाती है। इसी के साथ पौधों को पोषक तत्वों एवं खनिज पदार्थों की उपलब्धता बढ़ती है। मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 25 सेंटीमीटर गहराई तक गर्मी की जुताई करनी चाहिए। देशी हल द्वारा जुताई नहीं करें, क्योकि इसके द्वारा मिट्टी पलटना संभव नहीं है। यदि खेत में ढलान हो तो जुताई ढलान के विपरीत दिशा में करनी चाहिए, जिससे वर्षा ऋतु में खेत से पानी व मिट्टी न बह पाएं। गर्मी की जुताई रबी फसल की कटाई के बाद प्रायः मई के प्रथम सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह के बीच करनी चाहिए। सरसों समूह की फसलों से अच्छी पैदावार के लिए ठीक से खेत तैयार करना जरूरी है, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
बारानी स्थिति में क्या करें
बारानी क्षेत्रों में भूमि तैयारी के वक्त नमी संरक्षण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। भूमि की तैयारी वर्षा ऋतु से ही शुरू हो जाती है। खरपतवार नष्ट करने व नमी संरक्षण के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें। इसके बाद हर प्रभावी बारिस के बाद खेत की जुताई करें तथा जुताई के तुरन्त बाद पाटा लगायें। यह नमी संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है। अन्तिम बारिस के बाद गहरी जुताई कर पाटा लगाकर नमी संरक्षण करें। इससे ज्यादा से ज्यादा वर्षा का पानी मिट्टी में जायेगा और मिट्टी के लवण की कुछ मात्रा भी फसल के जड़ क्षेत्र से नीचे चली जाएगी। बुवाई से पहले कल्टीवेटर से दो आड़ी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना दें। खेत में ढेले ना हों, क्योंकि इससे नमी में तेजी से कमी हो जाती हैं। आखरी जुताई के समय 5 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है, साथ मे 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 से 35 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश ओर यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है। यदपि उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना लाभकारी पाया गया है।
सिंचित स्थिति में क्या करें
सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन से चार जुताईयां तबेदार (हेरो) हल से करनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्र में जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढैले न बने। अगर बोने से पूर्व भूमि में नमी की कमी है, तो खेत में पलेवा करना चाहिए। बोने से पूर्व खेत खरपतवार रहित होना चाहिए।सिंचित क्षेत्रों में दो फसलीय पद्धति के अंतर्गत सरसों बुवाई के लिए भूमि की तैयारी, खरीफ फसलों की कटाई के बाद पलेवा देकर प्रारम्भ करें। पलेवा के बाद 2 या 3 जुताई करें व पाटा लगायें। हर दशा में खेत की मिट्टी को भुरभुरा व समतल बनायें।आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है, साथ मे 55 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश ओर यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है।
उत्पादन बढ़ाने के सरल तरीके
(1) अच्छे उत्पादन के लिए सरसों समूह की फसल के अनुकूल भूमि का चयन करें।
(2) क्षेत्र और मिटटी के अनुकूल किस्म का चयन करें।
(3) यदि पूर्व की फसल के अवशेष खेत में है तो पहली जुताई कटर या मिटटी पलटने वाली मशीन से करें।
(4) सरसों की फसल के लिए गहरी जुताई के बाद दो से तीन जुताई देसी हल अथवा कल्टीवेटर से करने के बाद खेत की भूरबुरा और समतल बना लें।
(5) यदि संभव हो तो अच्छे उत्पादन के लिए दूसरी जुताई के समय अच्छी गली-सड़ी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद मिटटी में मिला दें।
(6) यदि खेत में दीमक का प्रकोप है, तो अंतिम जुताई से पहले 1.5 प्रतिशत चूर्ण क्लोरापाइरीफास 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाएं।
(7) उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें।
(8) सरसों समूह की फसलों की बुआई स्मी पर करें।
खेत की तैयारी ऐसे करेंगे तो मिलेगा सरसों का ज्यादा उत्पादन